प्यास थी एक बूँद की
चाह थी एक फूल की
आस थी अच्छे दोस्तों की
आज के लिए बस इतनाही ---
Posted by दीपिका जोशी 'संध्या' at 10:41 pm 0 comments
Posted by दीपिका जोशी 'संध्या' at 9:52 pm 1 comments
Posted by दीपिका जोशी 'संध्या' at 6:09 pm 1 comments
एक दिन रोज़ का समाचार-पत्र पढ़ते-पढ़ते एक छोटे से लेख पर नज़र गई, और बात दिल को ऐसे छू गई, आप सबके साथ बाँटना चाहती हूँ।
वेस्टमिनिस्टर अबे बिशप के क़ब्र पर संदेश लिखा हुआ था- ''मेरी जवानी में मुझे कोई ऐसी ज़्यादा ज़िम्मेदारियाँ नहीं थीं। मेरी कल्पनाशक्ति को कोई सीमाएँ नहीं थीं। उस समय मैं पूरे जग को बदलने के ख़्वाब देखता था। उमर बढ़ती गई, अनेकों अनुभवों से मैं रोज़ हर मोड़ पर कुछ न कुछ सीखता और होशियार होता चला गया। मुझे यह बात समझ में आ गई कि पूरे जग को बदलना संभव नहीं। इसलिए मैंने मेरे बस में अपने देश में कुछ बदलाव लाने की ठानी। थोड़े ही दिनों में यह भी आसान नहीं लगा।
उम्र की साँझ होने को थी, क्यों न एक कोशिश अपने परिवार में ही हो जाए, पर ओह!! ये क्या, यहाँ भी कितनी ढ़ेरों दिक्कतें इस आसान से लगने वाले काम में। आज मैं मृत्युशैय्यापर हूँ और अचानक साक्षात्कार हुआ कि सबसे पहला बदलाव मैं खुद में ला सकता था। हो सकता है कि मेरा ही आदर्श सब मेरे अपनों में कुछ अच्छे बदलाव ला सकता था। ऐसा ही मैं आगे बढ़ता और क्या पता अपने देश के साथ पूरे जग की कायापलट कर भी देता। ख़ैर. . .''
Posted by दीपिका जोशी 'संध्या' at 5:47 pm 0 comments