बुधवार, 3 अक्तूबर 2007

पूनम, अश्विन और मैं


मराठी भाषी होने के साथ हिंदी से भी लगाव रहा। वेब पर खाली समय बीतने लगा। दोस्त मिले, साथ वेब पर उपलब्ध भंडार से काफ़ी कुछ सिखना हुआ। आगे बढ़ते रहने की कोशिश जारी है, आज यह ब्लाग बनाने का ख़याल आया। ब्लाग की शुरुआत पुरानी यादों के साथ करना चाहूँगी जब अभिव्यक्ति और अनुभूति का विचार पूर्णिमा वर्मन के मन में आया था। सबकी मेहनत रंग लाई - आज मैं, अश्विन गांधी और पूर्णिमा मिलकर 'अभि-अनु' को आगे लिए जा रहे हैं। इन दो करीबी दोस्तों से काफ़ी कुछ सीखा है मैंने। इन अच्छे दोस्तों के लिए कुछ पंक्तियाँ लिखी थी वो आपके सामने रखना चाहती हूँ।

प्यास थी एक बूँद की
सागर मैंने है पाया

चाह थी एक फूल की
गुलशन मैंने है पाया

आस थी अच्छे दोस्तों की
पूनम अश्विन को मैंने है पाया।

आज के लिए बस इतनाही ---