
उन्हीं गुलमोहर के फूलों के नाम
निखरा रंग हर फूल का आँगन की है शान
दिलकश खिलता गुलिस्तां रखता सबका मान
झुकी झुकी है डालियाँ लुकीछिपी है छाँव
गुलमोहर बुलाए तले थके पथिक के पाँव
कानों में गुनगुन करे बतियाती है डाल
दोपहरी जल जल मरे हँसे गुलमोहर लाल
गुलमोहर रंगने लगा दोपहरी सुनसान
धीमा झोंका हवा का एक सुरीली तान
सिंदूरी कालीन पर गुलमोहर शालीन
तन का हिंडोला डुले मन काहे गमगीन
ना रूठ यों गुलमोहर नहीं बिखर हवा संग
शृंगार हो मौसम का ओढ़ा दो लाल रंग
गरम थपेडे बह रहे गुलमोहर मुस्काए
गरम थपेडे बह रहे गुलमोहर मुस्काए
हर मौसम में खुश रहो यही समझाए
दीपिका जोशी 'संध्या'
1 comments:
वा! क्या बात है! कितनी अच्छी कविता. सुंदर.
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