रविवार, 23 सितंबर 2007

कैसी कैसी सोच...

माँ का दर्जा तो है ही ऊँचा...पर कभी-कभी ऐसा भी होता है...मन में उठने वाले विचार ऐसे हो सकते हैं...मुझे बहुत ही भा गए, आप भी मेरे विचारों से शायद सहमत होंगे।


मेरी सोच में...

मैं चार साल का था- मेरी माँ कुछ भी कर सकती है...शी इज द बेस्ट!
आठ साल का था - मेरी माँ को बहुत कुछ समझता है...समझे नं?
बारह साल का था- मेरी माँ मुझे समझती ही नहीं।
पंद्रह साल का था- ओह! मेरी माँ जहाँ-तहाँ आड़े आती है, कुछ करने ही नहीं देती।
अठारह साल का था- कमॉन मॉम, मैं अब कायदे से सज्ञान हूँ। मेरे झमेले में मत पड़ो।
पच्चीस साल का था- शिट यार, उस समय माँ की बात मान लेनी चाहिए थी।
पैंतीस साल का था- कुछ भी करने से पहले एक बार माँ को पूछ लो तो अच्छा होगा।
पचास साल का हुआ तब- आज इस बारे में माँ का क्या कहना होता, भगवान ही जानते हैं।
पैंसठ साल का हूँ तब- आज माँ रहती तो. . . .