मंगलवार, 28 अगस्त 2007

माँ को मैंने जाना

घर में सुबह-सुबह की भागदौड़ शुरू हो गई थी।''राहुल, पढ़ाई पूरी हो गई क्या? चलो जल्दी, स्कूल को देर हो रही है।''''हाँ माँ, हो गई पढ़ाई, ये देखो 'मेरी माँ' पर निबंध लिखना था, मैंने लिख लिया है। मेरी माँ सुबह मुझे जल्दी उठाती है, पढ़ाई करवाती है, मुश्किलें आएँ तो समझाती है, कहानियाँ सुनाती हैं, मेरे बीमार होने पर डॉक्टर के पास ले जाती है वगैरा, ठीक है न माँ?''''हाँ हाँ, चल जल्दी बॅग भर, डिब्बा रखो और जाओ स्कूल।'' माँ ने राहुल को मदद की और स्कूल के लिए रवाना कर दिया। शाम को राहुल स्कूल से आया पर उदास था। टीचर को किसी भी बच्चे का निबंध पसंद नहीं आया। सभी ने एक जैसा ही लिखा था। टीचर ने अब कुछ माँ की पहलुओं पर ग़ौर कैसे किया जा सकता है इस पर रोशनी डाली और दुबारा लिखने का मौका सभी बच्चों को दिया गया। माँ की पसंद, तुम लोग उसके लिए क्या करते हो, उसकी पढ़ाई, उसके छंद, घर के बाकी सदस्य उसके परिश्रम के बारे में क्या सोचते हैं, इन बातों पर सोचने को कहा। यदि चाहो तो घर के वाकी सदस्य जैसे पिताजी दीदी भैय्या से मदद ले सकते हैं पर अपनी माँ को कोई कुछ नहीं पूछेगा। ''आठवी कक्षा के विद्यार्थी हो सब, विचारपूर्वक लिखना अब आना ही चाहिए।'' टीचर ने कहा।क्लास के सब बच्चे सोच में पड़ गए। देखा जाए तो मुश्किल, देखा जाए तो आसान भी।
जैसे राहुल घर पहुँचा, माँ की हर हरकत, उसके काम करने का तरीका, और बाकी भी, निरखना-परखना शुरू कर दिया। ''माँ की पसंद क्या होती है, मैं सिर्फ़ आलू की ही सब्ज़ी खाता हूँ, माँ सब सब्ज़ियाँ, चटनियाँ खाती हैं। सबको ताज़ा खाना खिलाती है, कम पड़े तो दो निवाले कम भी खाती है। फेंकना न पड़े इसलिए दूसरे दिन खुद बाँसा खाना अपनी थाली में लेती है। हम कभी माँ को ऐसा नहीं कहते कि आज मुझे बाँसा खाना दे देना और तुम ताज़ा खा लेना। मैं शायद छोटा हूँ पर दीदी भैय्या भी तो नहीं कहते ऐसा।
मुझे टेबल टेनिस पसंद है। माँ ने मेरे जन्मदिन की राह देखे बिना ही टेनिस की रैकेट दिला दी। माँ को कौनसी चीज़ पसंद है? हाँ!! माँ को पढ़ने की और हारमोनियम बजाना बहुत पसंद है। किताब खरीदने का कभी-कभार कहा भी हो, पर महँगी है सोचकर उन्हीं पैसों में दीदी के लिए किताब खरीदती है। हारमोनियम कब का खराब हुआ पड़ा है। एक-दो बार माँ ने शायद सुझाव भी दिया था उसे ठीक करने का, पर किसे फ़ुर्सत! ऐसे ही कोने में रखा हुआ, एक चद्दर से ढँका हुआ पड़ा है।
रंग कौनसा पसंद करती है माँ? कुछ समझ में नहीं आता क्योंकि माँ कभी खुद की पसंद की साड़ी ख़रीदते मैंने नहीं देखा। शादी-ब्याहों में मिली हुई साड़ियाँ ही अक्सर वह पहनती है, चाहे जिस रंग की भी हो। पर याद आया, उसने चादर हल्के नीले रंग की खरीदी थी।
माँ का जन्मदिन कब होता है? माँ को ही पूछना चाहिए. . .पर नहीं, टीचर ने माँ से किसी भी सवालों के जवाब जानने के लिए मना किया हुआ है, चलो दीदी से पूछा जाए। ''दीदी, माँ का जन्मदिन कब होता है?'' ''अरे! १२ सितंबर को।''मुझे तो कभी याद नहीं कि ये दिन आजतक कभी हमने मनाया हो। पर माँ मेरा, दीदी का और पापा के जन्मदिन पर सबके पसंदीदा पक्वान बनाकर ज़रूर खिलाती है। माँ को कौनसी मीठी चीज़ पसंद है? कभी ग़ौर ही नहीं किया। ''पापा, माँ को कौनसी मीठी चीज़ पसंद है, आपको मालूम है?''पापा मेरे उपर गुस्सा होते हुए कहने लगे, ''देख नहीं रहे हो, मैं काम में हूँ, माँ से ही क्यों नहीं पूछ लेते, मुझे क्या मालूम?''
जब कभी हममें से किसी को भी पिकनिक पर जाना होता है, सुबह जल्दी उठकर गाजर का हलवा, नमकीन पूरी बना कर देती है। वो कब जाती है ऐसे पिकनिक? एक बार ही माँ ने महिला मंडल की सहेलियों के साथ पिकनिक जाने का सोचा था, पर उसी दिन पापा ने अपने दोस्तों को खाने पर बुला लिया तो वह जा नहीं पाई थी।पढ़ाई का सोचता हूँ तो एक बार माँ ने बातों में बताया था कि उसे डॉक्टर बनना था पर दोनों मामा की पढ़ाई के लिए माँ की पढ़ाई रुकवा दी गई। शादी के बाद घर-गृहस्थी में ऐसी उलझ गई की बात नहीं बनी।
दैनिक अख़बार पढ़ना बहुत पसंद है उसे पर हम बच्चों का अंग्रेज़ी का ज्ञान बढ़ाने हेतु हमारे घर में हिंदी अख़बार की जगह अंग्रेज़ी अखबार ने ले ली। तब से बेचारी का अखबार पढ़ना भी न के बराबर। टीवी भी पापा को अंग्रेज़ी खबरें, दीदी केबल पर आनेवाली उसकी मनपसंद पिक्चरें और मैं कार्टून, इन सब में से जब यदि कोई समय बचता है तभी वो उसे मनपसंद प्रोग्राम शायद देख लेती है।
बाहर घूमने जाने का मौका भी माँ के नसीब में बहुत ही कम आता है। पापा ऑफिस से थक कर आते हैं, छुट्टी के दिन दोस्तों से मिलना, समय बीताने के हेतु उनसे ताश खेलना, दीदी अपनी सहेलियों में मग्न। एक दिन मैं खेलने गया, शाम हो गई, ऐसे तो हमारा खेल खतम नहीं हुआ था, पर मैं पानी पीने घर आया, मैंने माँ की आँखों में पानी देखा, ''माँ क्या हुआ?'' ''कुछ नहीं बेटा।'' और उसने साड़ी के पल्लू से हलके आँख पोंछ ली।''माँ बताओ न क्या हुआ?''''क्या बताऊँ? अभी तुम छोटे हो! और बड़े हो कर भी क्या फ़रक पड़ेगा?'' माँ के स्वर कुछ हलके होते दिखे। मुझे कुछ समझ में नहीं आया और मैं भाग गया फिर से खेलने।''
पर १५ दिन का समय निबंध लिखने के लिए सब बच्चों को मिला था। इन १५ दिनों में राहुल ने माँ के बारे में सब कुछ जान लिया। ''घर में माँ का बर्ताव, रहन-सहन की तुलना बाकी सदस्यों से करते इन १५ दिनों में निबंध जैसा भी हुआ हो, पर मुझे ये खुशी है की माँ को मैं थोड़ा बहुत तो जान ही गया।''
अंतिम चरण में निबंध पहुँचा ही था, राहुल की किताब पर उसीकी आँखों से दो बूँदें गिरी, माँ को थोड़ा बहुत जान लेने की खुशी के आँसूँ थे शायद!!!