गुरुवार, 31 दिसंबर 2009
शनिवार, 15 अगस्त 2009
१५ अगस्त....मेरी दोहरी खुशी
आज १५ अगस्त स्वतंत्रता दिन की बहुत बहुत शुभकामनाएँ!!!!
हमारा तिरंगा हमारे हाथ...
स्वतंत्रतादिवस की बहुत यादें हैं। जब मैं पाठशाला में थी तब १५ अगस्त की तैय्यारी १४ अगस्त की शाम को ही शुरू हो जाती। माँ ने सफेद फ्रॉक खुब साफ धो-धाकर इस्त्री करके रखा हुआ होता था। सफेद कॅनवास के जूते साफ करने महा कठिन कार्य हुआ करता था। हर शनिवार को सफेद जूते पहनकर जाने होते थे और इन बरसात के दिनों में तो उनकी पूरी तरह लग जाती थी। लेकिन १५ अगस्त को पाठशाला में जाना तो एकदम ढाँसू होकर... इसलिए जूते बड़ी मेहनत से साफ कर पानी वाले सफेद पॉलिश से चमकाने की कोशिश की जाती। ऐसे एकदम सफेद फ्रॉक, लंबे बालों को लाल रंग की रिबन लगाकर कसकर दो चोटियाँ और चमकाए हुए सफेद जूते पहनकर पाठशाला में ध्वजावंदन को जाना होता था।
मेरे बच्चों तक यह चित्र थोडा बदल गया था। १५ अगस्त को पाठशाला में जाने का उत्साह कम हो गया था। बस घऱ में बैठो और छुट्टी मनाओ यही ख़्वाहिश रहती थी। कौन सुबह सुहब ७ बजे पाठशाला पहुँचेगा...मस्त आराम करो..सुस्ती में देर से सुबह उठो ऐसे ख़याल ज़्यादा पनपने लगे थे। पर ऐसे दोस्तों के बीच रहते भी रुचिर शिशिर के मन में कभी ऐसा खयाल आया नहीं यह बात मेरे लिए उस समय बहुत मायने रखती थी। शायद जब हम उनकी उम्र के थे तब क्या करते थे, यह सब मैं उन्हें बताती रहती थी, उन बातों का भी असर हो सकता है। रुचिर शिशिर अपने काफी दोस्तों को भी सुबह ७ बजे पाठशाला साथ ले जाने के लिए पटाते थे और सब मिलकर जाते भी थे। मैं ही उनकी सारी तैय्यारी कर के देती थी। बारिश के दिन रहते यदि बारिश है तो उनके पापा उन्हें पाठशाला छोड़ आते थे। पाठशाला में मिठाई मिलती थी। वहाँ चाहे मिले न मिले..मैं घर में रुचिर शिशिर और सब बाकी बच्चों के लिए कुछ तो चीज्जी (कम से कम एक लिमलेट की गोली ही सही..) ला कर रखती थी। पाठशाला में ध्वजावंदन के अलावा किसी शिक्षक ने या मुख्याध्यापक ने १५ अगस्त के बारे में क्या बताया ये पूछती थी। (ज़्यादा कुछ बता नहीं पाते थे क्योंकि ध्वजावंदन और राष्ट्रगीत गाने के अलावा बाकी सब चौपट ही होता था....मेरी तरफ़ से ये सब माफ़.....कुछ भी हो पर बचपन ही था...बचपना तो रहेगा ही...)
आगे चलकर सब बंद होता गया। समय बीतता गया। १५ अगस्त सिर्फ़ टीवी पर देखने तक सीमित रह गया। अमेरिका में आगे की पढ़ाई करने जब रुचिर शिशिर गए तब फिरसे एक बार भारतप्रेम जागृत हो गया। कन्सास के भारतीय दूतावास में वहाँ के वास्तव्य के दो सालों के दौरान ध्वजावंदन के कार्यक्रम में उपस्थित रहे...फोटो खींचे...हमें दिखाए.....
स्वतंत्रता दिन और प्रजासत्ताक दिन...तिरंगे के सम्मान में भारतीय दूतावास में जाते ही रहे हैं पर जहाँ जहाँ भारत का संबंध आता है जैसे सानिया मिरझा का हौसला बढ़ाने बाकी उपस्थित भारतीयों को साथ देने यह जोड़ी भी अपने बड़े तिरंगे के साथ न्यूयार्क पहुँच गई थी। वैसे ही सब दोस्तों को इकट्ठा करके विश्वचषक क्रिकेट का अंतिम सामना भारत से मँगाए गए विश्वचषक वाले टी-शर्ट पहनकर साथ में बैठकर देखा था। अभिमान है हमें हमारे ऐसे बच्चों का...भारत के बाहर रहकर भी भारतीयत्व जतन करने का....
भारत माता की जय...
स्वतंत्रतादिनों की यादें हो गईं....तिरंगे का अभिमान पहले भी था...आज भी है। पर इसके साथ गत ९ सालों से मेरी ज़िंदगी जैसी इंद्रधनुषी रंगों से रंगी है...हमारे 'अभिव्यक्ति' इस साप्ताहिक की वजह से। १५ अगस्त 'अभिव्यक्ति' का जन्मदिन होता है। आज १०वे साल में प्रवेश करनेवाली 'अभि' मेरे ह्रदय के एक कप्पे में विराजमान है। कभी कभी निरुत्साही लगनेवाले जीवनको उत्साह से, आनंद से भर देती है। दिन की शुरुआत सुबह ५.३० बजे संगणक पर 'अभि' के साथ शुरू होकर उसीके साथ समाप्त होती है। 'अभि' को साथ देने 'अनु' जबसे आई....इन रंगों का खुमार और बढ़ गया। इसके साथ रहते कथा-कविता के करीबी रिश्ता बना, जैसे लिखने का स्रोत मिला हो....लिखने का प्रोत्साहन मिला हो....

९ साल कैसे बीते, भागे...दौड़े पता ही नहीं चला...काम में मसरूफ़ रहे...नया सीखते रहे...कुछ लोग नए मिले..कुछ ने साथ छोड़ दिया.....'अभि' की संपादिका और मेरी ख़ास सहेली पूर्णिमा और मेरे अथक प्रयत्नों की बदौलत और पाठकों की साथ मिलते यहाँ तक का सफल सफर किया है। पाठकों की साथ आगे भी मिलती रहेगी इसका विश्वास भी है...राष्ट्रभाषीय प्रत्येक व्यक्ति का, उसके लेखन का यहाँ हमेशा स्वागत रहता है...
पाठकों की प्रतिक्रियाएँ और सूचनाओं को मद्देनज़र 'अभिव्यक्ति' कुछ खास समय पर खास मौके पर नव-नवीन रूप में आती रहती हैं।
'अभि-अनु' के जन्मदिन मेरे और पूर्णिमा के लिए अपने बच्चों के जैसे एक उत्सव समान होते हैं। फरक बस इतनाही होता है की मैं और पूर्णिमा अलग देशों में होने की वजह से संगणक पर ही साथ रहते हैं और इसलिए 'अभि-अनु' के जन्मदिन भी संगणक पर ही मनाए जाते हैं....अति उत्साह में...अति आनंद में....
दिन-साल के पलटते पन्ने
बहार 'अभि' पर छाई रही
अपने ही पर दूर देश में
भारतीयों को भाती रही
रंग इसके बहुत ही न्यारे
संग मौसम खिलती रही
अपने ही अलग ढंगों से
पूछती कभी बतियाती रही
जनमदिन हो बहुत मुबारक
दिल से दुनिया कहती रही
दीपिका 'संध्या'
Posted by दीपिका जोशी 'संध्या' at 5:31 pm